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आइये हम सौर्य ऊर्जा के बारे में कुछ जानें Solar Energy & Solar Panel आइये हम सौर्य ऊर्जा के बारे में कुछ जानें Solar Energy & Solar Panel

 

“सोलर पैनल” Solar panel वो डिवाइस होती है जिसकी सहयता से सौर ऊर्जा solar energy का उपयोग करते हैं, सूर्य की किरण में जो ऊर्जा के कण पाये जाते हैं, उन्हे फोटॉन (Photon) कहा जाता है। फोटॉन से प्राप्त ऊर्जा को ही सौर ऊर्जा Solar energy कहते हैं। Solar panel, Solar energy को अवशोषित (absorb) करता है और डाइरेक्ट करेंट (Direct Current ) में बदलता है।

Edmond Becquerel ने 1839 मे दुनिया का पहला फोटोवोल्टिक सेल बनाया। इस कार्य के कारण, फोटोवोल्टिक प्रभाव (Photovoltaic Effect) को बेकेरल प्रभाव Becquerel Effect) के रूप में भी जाना जाता है।

Solar panel में कई सारे जुड़े हूए solar cell लगे होते हैं।, इनको सौर बैटरी, सोलर मॉड्यूल या “Photovolteic cell ” भी कहा जाता है। जैसे ही इन पर प्रकाश पड़ता है वैसे ही यह वोल्टेज उत्पन करते है, लेकिन यह मात्रा बहुत कम होती है, इसलिए इन्ही छोटे-2 फोटोवोल्टिक सेल्स को मिलाकर एक बड़ा Solar panel बनाया जाता है, ताकि पर्याप्त मात्रा में वोल्टेज प्राप्त किया जा सके। ये सौर सेल सिलिकॉन Silicon की परतों से बने हुए होते हैं। सिलिकॉन एक अर्द्धचालक धातु (semi-conducting material) होती है। इनकी बनावट में सेल की परतों को इस प्रकार से रखा जाता है कि ऊपर वाली परत में ज्यादा मात्रा में इलेक्ट्रॉन पाये जाते हैं। सेल में एक तरफ +ve व दूसरी तरफ -ve आवेश (Charge) पाया जाता है।

जब सूर्य की रोशनी इन सेल पर पड़ती है तो सेल द्वारा फोटॉन की ऊर्जा अवशोषित की जाती है, और ऊपरी परत में पाये जाने वाले इलेक्ट्रॉन सक्रिय हो जाते हैं। तब इनमें बनने वाली ऊर्जा का प्रवाह होना आरम्भ होता है। धीरे-धीरे ये ऊर्जा बहती हुई सारे पैनल में फैल जाती है। इस प्रकार से Solar panel ऊर्जा का निर्माण करते हैं। ये डाइरेक्ट करेंट वायर के ज़रिए इनवरटर (Inverter) तक पहुँचता है, जो डाइरेक्ट करेंट (Direct Current ) को अल्टरनेटिंग करेंट (Alternating Current) में बदल देता है। सोलर पैनल में ऊर्जा के नियंत्रण तथा सुरक्षा बनाये रखने के लिए सेल में डायोड का भी प्रयोग किया जाता है।

मुख्यत: दो तरह के सोलर पैनल है :–

मोनोक्रिस्टेलिन सोलर पैनल (Mono-crystalline Solar Panels) –

Monocrystalline, Mono-perc Solar panel अच्छी गुणवत्ता वाले  होते है क्योंकि इसे बनाने में सिलिकॉन के एकल क्रिस्टल (Single Silicon Crystal) का इस्तेमाल होता है इनमे कम समय में भी अधिक विद्युत या ऊष्मा उत्पादन करने की विशेषता पाई जाती है। इसी कारण ये महंगे भी होते है। ऊँचे स्तर पर solar energy का इस्तेमाल करने वाले क्षेत्र में इनका उपयोग उचित रहता है।

पोलीक्रिस्टेलिन सोलर पैनल  (Poly-crystalline Solar Panels) 

भारत में अधिकतर इसी तरह के Solar Panel लोकप्रिय है | इनके निर्माण में सिलिकॉन के एकल क्रिस्टल का प्रयोग न करके अलग-अलग क्रिस्टल का प्रयोग किया जाता है। साधारण प्रयोग के लिए ये सोलर पैनल उपयोगी सिद्ध होते हैं। ये monocrystalline solar panel की तुलना में कम महंगे होते है।

 

“सोलर पैनल” Solar panel वो डिवाइस होती है जिसकी सहयता से सौर ऊर्जा solar energy का उपयोग करते हैं, सूर्य की किरण में जो ऊर्जा के कण पाये जाते हैं, उन्हे फोटॉन (Photon) कहा जाता है। फोटॉन से प्राप्त ऊर्जा को ही सौर ऊर्जा Solar energy कहते हैं। Solar panel, Solar energy को अवशोषित (absorb) करता है और डाइरेक्ट करेंट (Direct Current ) में बदलता है।

Edmond Becquerel ने 1839 मे दुनिया का पहला फोटोवोल्टिक सेल बनाया। इस कार्य के कारण, फोटोवोल्टिक प्रभाव (Photovoltaic Effect) को बेकेरल प्रभाव Becquerel Effect) के रूप में भी जाना जाता है।

Solar panel में कई सारे जुड़े हूए solar cell लगे होते हैं।, इनको सौर बैटरी, सोलर मॉड्यूल या “Photovolteic cell ” भी कहा जाता है। जैसे ही इन पर प्रकाश पड़ता है वैसे ही यह वोल्टेज उत्पन करते है, लेकिन यह मात्रा बहुत कम होती है, इसलिए इन्ही छोटे-2 फोटोवोल्टिक सेल्स को मिलाकर एक बड़ा Solar panel बनाया जाता है, ताकि पर्याप्त मात्रा में वोल्टेज प्राप्त किया जा सके। ये सौर सेल सिलिकॉन Silicon की परतों से बने हुए होते हैं। सिलिकॉन एक अर्द्धचालक धातु (semi-conducting material) होती है। इनकी बनावट में सेल की परतों को इस प्रकार से रखा जाता है कि ऊपर वाली परत में ज्यादा मात्रा में इलेक्ट्रॉन पाये जाते हैं। सेल में एक तरफ +ve व दूसरी तरफ -ve आवेश (Charge) पाया जाता है।

जब सूर्य की रोशनी इन सेल पर पड़ती है तो सेल द्वारा फोटॉन की ऊर्जा अवशोषित की जाती है, और ऊपरी परत में पाये जाने वाले इलेक्ट्रॉन सक्रिय हो जाते हैं। तब इनमें बनने वाली ऊर्जा का प्रवाह होना आरम्भ होता है। धीरे-धीरे ये ऊर्जा बहती हुई सारे पैनल में फैल जाती है। इस प्रकार से Solar panel ऊर्जा का निर्माण करते हैं। ये डाइरेक्ट करेंट वायर के ज़रिए इनवरटर (Inverter) तक पहुँचता है, जो डाइरेक्ट करेंट (Direct Current ) को अल्टरनेटिंग करेंट (Alternating Current) में बदल देता है। सोलर पैनल में ऊर्जा के नियंत्रण तथा सुरक्षा बनाये रखने के लिए सेल में डायोड का भी प्रयोग किया जाता है।

मुख्यत: दो तरह के सोलर पैनल है :–

मोनोक्रिस्टेलिन सोलर पैनल (Mono-crystalline Solar Panels) –

Monocrystalline, Mono-perc Solar panel अच्छी गुणवत्ता वाले  होते है क्योंकि इसे बनाने में सिलिकॉन के एकल क्रिस्टल (Single Silicon Crystal) का इस्तेमाल होता है इनमे कम समय में भी अधिक विद्युत या ऊष्मा उत्पादन करने की विशेषता पाई जाती है। इसी कारण ये महंगे भी होते है। ऊँचे स्तर पर solar energy का इस्तेमाल करने वाले क्षेत्र में इनका उपयोग उचित रहता है।

पोलीक्रिस्टेलिन सोलर पैनल  (Poly-crystalline Solar Panels) 

भारत में अधिकतर इसी तरह के Solar Panel लोकप्रिय है | इनके निर्माण में सिलिकॉन के एकल क्रिस्टल का प्रयोग न करके अलग-अलग क्रिस्टल का प्रयोग किया जाता है। साधारण प्रयोग के लिए ये सोलर पैनल उपयोगी सिद्ध होते हैं। ये monocrystalline solar panel की तुलना में कम महंगे होते है।

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